Saturday 15 July 2017

धरती पर बैठकर खाने के फायदे

भारतीय परंपरा के अनुसार धरती यानी भूमि पर बैठकर खाना खाने की परंपरा वैदिक काल से रही हैं।
लेकिन आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी परंपराओं को भुलाकर पाश्चात्य संस्कृति में रंगते जा रहे हैं। लेकिन ये बातें जरूर आजमाएं
- जब आप जमीन पर बैठते हैं तो सुखासन में बैठते हैं, जो कि पाचन में मदद करने वाली मुद्रा है। जब आप भोजन करने के लिए इस मुद्रा में बैठते हैं तो पेट से जुड़ी समस्याएं कम होती है।
- यदि पद्मासन में भोजन के लिए बैठते हैं, तो आपकी निचली पीठ, पेट के आसपास और पेट की मांसपेशियों में खिंचाव होता है। जिसके कारण डाइजेस्टिव सिस्टम आराम से अपना काम कर पाता है।
- जब आप परिवार के साथ जमीन पर बैठकर खाना खाते हैं तो आपका ध्यान खाने में रहता है। यह केवल आपके ध्यान को ही खाने पर केंद्रित नहीं करता, बल्कि खाना खाते समय बेहतर विकल्प को चुनने में भी मदद करता है।
- सही समय पर यदि पूरा परिवार एक साथ खाना खाए तो आपसी सामंजस्य बढ़ता है। अपने परिवार के साथ जुड़ने के लिए बहुत अच्छा है, क्योंकि जमीन पर बैठकर भोजन करने से आपका मन शांत और सुखद रहता है, इसलिए यह अपने परिवार के साथ जुड़ने का एक बेहतरीन कारण बन जाता है।
- खाना खाने का ये पारंपरिक तरीका आपको समय से पहले बूढ़ा नहीं होने देता हैं, क्योंकि इस मुद्रा में बैठकर खाना खाने से रीढ़ की हड्डी और पीठ से जुड़ी समस्याएं नहीं होती है।
- एक रिसर्च के अनुसार लोग जमीन पर पद्मासन में या सुखासन में बैठते है और बिना किसी सहारे के खड़े होने में सक्षम होते हैं। उनकी लंबे समय तक जीवित रहने की संभावना ज्यादा होती है, क्योंकि इस मुद्रा से उठने के लिए अधिक लचीलेपन और शारीरिक शक्ति की आवश्यकता होती है।
- जो लोग सुखासन में बैठकर खाना खाते हैं। उनका दिमाग तनाव रहित रहने की संभावना अधिक होती है, क्योंकि यह दिमाग को रिलैक्स और तंत्रिकाओं को शांत करता है। आयुर्वेद में माना गया है कि मन को शांत रखकर खाना खाने से पाचन बेहतर होता है।
- जब आप जमीन पर बैठकर खाना खाते हैं तो ब्लड सर्कुलेशन सुधरता है। इस तरह दिल बड़ी आसानी से डाइजेस्ट करने में मदद करने वाले सभी अंगों तक खून पहुंचाता है।

source- http://naidunia.jagran.com

Monday 26 June 2017

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती / सोहनलाल द्विवेदी

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती