Wednesday, 23 October 2013

कहीं किरायेदार न कर लें घर पर कब्ज़ा

घर किराये पर देना आजकल आमदनी का एक हिट ज़रिया बन चुका है। लेकिन जितना इसमें फायदा है उतना ही जोखिम भी है।

ऐसे कई मामले देखने में आए हैं जब किरायेदार मकानों में जम बैठे और मकान मालिक सिर धुनते रह गए।

आपके साथ ऐसा कुछ न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए क्या-क्या कदम उठाने ज़रूरी हैं
किरायेदार का बैकग्राउंड जांचें

कागज़ी  कार्रवाई करने से पहले किरायेदारों का पूरा आगा-पीछा जान लेना बेहद ज़रूरी है। चाहें तो अपने स्तर पर पता करवाएं या उनसे उनका कोई रेफरेंस सर्टिफिकेट मांगें। हो सके तो उनके पुराने मकान मालिक से भी मिलें। उनका वैध पर्मानेंट पता लेकर रखें और उसे वेरिफाई कर लें ताकि खुदा न खास्ता कठिन वक्त पड़ने पर आप उन्हें दबोच सकें। उनके द्वारा दिये गए डॉक्युमेंट्स को अच्छी तरह चेक कर लें व उनके ऑफिस का पता नोट कर लें
पुलिस वेरिफिकेशन

अपने स्तर पर तो आप उनका बैकग्राउंड जांचेंगे ही, पुलिस से भी उनकी वेरिफिकेशन करवाना ज़रूरी है। यह नियम भी है कि किरायेदार रखने से पहले मकान मालिक को लोकल पुलिस स्टेशन में जानकारी देनी पड़ती है और उसका वेरिफिकेशन करवाना भी ज़रूरी हो जाता है। इसे नज़रअंदाज़ करने पर इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 188 के तहत मकान मालिक को सज़ा भी हो सकती है। मकान मालिक को पुलिस वेरिफिकेशन फॉर्म के साथ किरायेदार की फोटो, उसके डॉक्युमेंट्स की कॉपी जैसे पैन कार्ड, लीज़ अग्रीमेंट और अड्रेस प्रूफ आदि स्थानीय पुलिस स्टेशन में जमा करवाने ज़रूरी होते हैं
लीज़ अग्रीमेंट की रजिस्ट्री

अगर आप कुछ महीनों के लिए प्रॉपर्टी किराये पर दे रहे हैं तो लीज़ अग्रीमेंट देना ज़रूरी नहीं है, लेकिन 11 महीनों से अधिक के लिए प्रॉपर्टी किराये पर चढ़ाने में आपको लीज़ अग्रीमेंट देना पड़ता है। इस दस्तावेज़ में अग्रीमेंट की अवधि, खाली न करने पर किरायेदार पर लगने वाला जुर्माना आदि जानकारियां दी जाती हैं

निकाले जाने की शर्तें

अवधि पूरी होने के साथ-साथ किराया न देने या आपकी प्रॉपर्टी से अवैध गतिविधयों को अंजाम देने के आधार पर भी किरायेदार को मकान छोड़ने के लिए कह सकते हैं। आपकी प्रॉपर्टी के किसी हिस्से में बिना आपकी मर्ज़ी के बदलाव करने पर भी किरायेदार को घर छोड़ने के लिए कहा जा सकता है। अगर किरायेदार ज्यादा ही अड़ियल हो तो उसके सभी डॉक्युमेंट्स लेकर इन मामलों के निपटारे के लिए रेंट कंट्रोल ऐक्ट के तहत राज्य सरकार द्वारा अपॉइंटेड अथॉरिटी की शरण में जाएं। इस प्रक्रिया में 5-6 महीने लग सकते हैं
पुलिस से नहीं मिलेगी मदद

किरायेदार से मकान खाली करवाने में लोकल पुलिस आपका सहयोग तभी कर सकती है जब वह किरायेदार किसी संदिग्ध या गैरकानूनी गतिविधि में लिप्त हो। किराया न देने या मकान न छोड़ने जैसी चीजों में पुलिस आपकी मदद नहीं कर पाती। हां, अगर मकान मालिक के पास किरायेदार को निकालने के लिए कोर्ट के ऑर्डर्स हों तो पुलिस कार्रवाई कर सकती है

सिविल कोर्ट की भूमिका

अगर कोई भी पक्ष स्टेट अथॉरिटी के फैसले से असंतुष्ट हो तो वह सिविल कोर्ट की शरण में जा सकता है। कितने समय में फैसला हो जाएगा, इन मामलों में यह कहना बहुत मुश्किल है। सिविल कोर्ट से भी निराशा हाथ लगने पर हाई कोर्ट में अपील की जा सकती है। इतना ज़रूर ख़्याल रखें कि बल के प्रयोग से मकान खाली करवाने की कोशिश आपके ही केस को कमज़ोर कर सकती है क्योंकि यह गैर-कानूनी है। इसलिए ऐसा कोई कदम न उठाएं

Courtesy: http://navbharattimes.indiatimes.com

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